थोड़ा-थोड़ा करके बहुत कुछ बन जाता है – जीवन की छोटी-छोटी चीज़ों की महानता
पक्षियों ने एक-एक तिनका जोड़ा।
सूरज दिन भर चमकता रहा — और डूबा नहीं।
युग गुज़र गए, पर समय का कोई शोर नहीं हुआ।
सागर की लहरें हमेशा गरजती रहीं, पर अंततः उन्होंने किनारों को तोड़ ही दिया।
बारिश मूसलधार हुई,
पेड़ और जंगल धीरे-धीरे घने हुए,
रेशे जुड़े — और कपड़ा बना,
कपड़े से अनाज का बोरा बना,
और अनाज से जीवन!
हर दाना, हर तिनका — धीरे-धीरे इकट्ठा हुआ।
लेखक ने एक शब्द लिखा — फिर वाक्य, फिर एक किताब।
किताब जली, पर विचार जलते नहीं।
विज्ञान, कला और कौशल — सब कुछ धीरे-धीरे विकसित हुआ।
बूंद-बूंद कर बारिश से नदी बनी, नदी से जीवन चला।
हर एक क़दम — किसी यात्रा का हिस्सा बना।
सूर्य धीरे-धीरे अस्त हुआ, फिर भी हर दिन समाप्त हुआ।
चट्टानों को समय ने घिस दिया,
बूंदों ने गुफाएँ बना दीं।
पत्ते-पत्ते मिलकर जंगल बना,
पत्थर-पत्थर मिलकर पर्वत।
वो जो अब भाला है, कभी सुई हुआ करती थी।
संचित धन — एक-एक सिक्का जोड़कर बना।
हम सब उस कहानी का हिस्सा हैं,
जहाँ थोड़ी-थोड़ी कोशिशें मिलकर एक महान परिवर्तन लाती हैं।
निष्कर्ष:
अगर जीवन में कुछ बड़ा पाना है, तो शुरुआत एक छोटी सी बूँद से ही होगी। एक शब्द से किताब, एक कदम से यात्रा, और एक विचार से क्रांति शुरू होती है। यही जीवन का मूल मंत्र है — थोड़ा-थोड़ा करके बहुत कुछ बनता है।

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