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रविवार, 8 जून 2025

"हसद: एक आदत जो इंसान को अंदर से खा जाती है | ईर्ष्या पर प्रेरणादायक विचार" शामिल करें: हसद क्या है ईर्ष्या के दुष्परिणाम हसद पर निबंध हसद और उसका अंजाम ईर्ष्या क्यों होती है

हसद: एक आत्म-विनाशकारी आदत 1. हसद क्या है? जो लोग दिल के तंग होते हैं, वे दूसरों की भलाई और तरक्की देख नहीं पाते। खासकर जब अपने रिश्तेदारों, दोस्तों या साथ काम करने वालों को अच्छी हालत में देखते हैं तो जल-भुन कर रह जाते हैं। ऐसे लोगों को 'हासिद' (ईर्ष्यालु) कहा जाता है और इस बुरी आदत को 'हसद' (ईर्ष्या) कहा जाता है। 2. हसद का असर हसद करने वाला व्यक्ति यह चाहता है कि उसके अलावा बाकी सभी पर मुश्किलें और बर्बादी आए। लेकिन उसकी यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होती। इसी वजह से वह हमेशा दुख, तनाव और परेशानी में डूबा रहता है। यह आदत एक खुदा की मार की तरह है जो हर समय उसकी गर्दन पर सवार रहती है। 3. हसद करने वाला खुद से बेखबर हासिद हमेशा दूसरों के गिरने और बर्बाद होने की उम्मीद करता है, लेकिन खुद की तरक्की की कोशिश नहीं करता। उसे अपनी भलाई से ज्यादा दूसरों की बर्बादी की फिक्र होती है। यही वजह है कि वह धीरे-धीरे आलसी, कमजोर और नाकाम होता जाता है। उसकी यह सुस्ती उसे ईश्वर की रहमतों से वंचित कर देती है। 4. जब हसद हद पार कर जाए जब हसद की बीमारी हद से बढ़ जाती है, तो हासिद खुलकर दूसरों की बुराई करने लगता है। वह हर समय शिकायत, निंदा, चुगली और झूठी बातें फैलाने में लगा रहता है। यहाँ तक कि वह झूठे इल्ज़ाम लगाने और बहुतान गढ़ने से भी बाज़ नहीं आता। इसी वजह से हसद का अंजाम होता है — दुश्मनी। और ये दुश्मनी सिर्फ एक-दो से नहीं, बल्कि हर कामयाब इंसान से होती है। 5. एक शेर हासिद के हाल पर: "हासिद को एक दम नहीं राहत जहान में, नज्र-ए-हसद है जान — है जब तक कि जान में!" अर्थात: हासिद को दुनिया में एक पल भी चैन नहीं मिलता, क्योंकि जब तक उसके अंदर जान है, तब तक हसद भी उसके साथ ही ज़िंदा रहता है। 📌 निष्कर्ष (Conclusion): हसद सिर्फ दूसरों को नहीं, खुद को भी बर्बाद कर देता है। इस आदत से बचना जरूरी है। जो लोग दूसरों की तरक्की से जलते हैं, वे कभी खुद तरक्की नहीं कर पाते। इसलिए हमेशा सकारात्मक सोचें, खुद की मेहनत पर भरोसा करें और दूसरों की कामयाबी को भी एक प्रेरणा की तरह देखें।

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